Friday 4 August 2017

रिखणीखाल-भाग-02 By Devesh Rawat

गतांग से आगे
शिक्षा-:इस  क्षेत्र  में शिक्षा एक सिरदर्द है जुई ग्राम सभा में 3 बच्चों पर 3 अध्यापक है कोटरी सैण में 95 बच्चों पर 2 अध्यापक है प्रायमरी स्कूल की बात है ये राजकीय इंडरमीडियट स्कूल बड़खेत में भवनों की मात्रा इतनी है कि पूरा एक गॉंव बस सकता है पर 6 अध्यापकों से 553 बच्चे देखे जा रहे है। देखे जाने शब्द का प्रयोग इस लिए कर रहा हूँ कि इस दसा में पढ़ाना सम्भव नही है।टांडियों, दरखसती खाल,डाबरी में भी हाल स्कूल के यही है।
कुछ हाल कमोबेश द्वारी स्कूल का भी वही है भवन नया तो बना है पर हालत बहुत खराब है भवन के और समूचे क्षेत्र  में 50% अध्यापक तो रोज कोटद्वार से छेत्र में अपडोंन करते है। राजकीय विद्यालय करतिया में शिक्षा का ये हिसाब है कि 35% बच्चे आप को मंदाल नदी में मच्छी मारते हुए देख जाएंगे। कोई सड़क सुविधा नही है फिलहाल जो सड़क भी बनी है वो बर्षात में बंद हो जाती है। प्राथमिक विद्यालय गाजा इस क्षेत्र में ऐसा विद्यालय है जहाँ भवन और अध्याक ठीक ठाक है। राजकील विद्यालय बुंगलगड़ी भी शिक्षकों का रोना रौ रहा



है यहाँ पर स्कूल के नजदीक है बाजार है जिस की वजह से शोरगुल से बच्चे अच्छे से पढ़ नही पाते है। चपडेत श्री दलीप रावत जी का गॉँव है जो बर्तमान में इस छेत्र से दूसरी बार विधायक है श्री दलीप रावत जी BjP के उम्मीदवार है औऱ उन के पिता स्वर्गीय श्री भारत सिंह रावत जी भी 4 बार इसी क्षेत्र से विधायक रहे है।
किल्बो खाल का हाल भी यही है ये स्कूल सन 2000 तक जनता स्कूल हुआ करता था तब यहाँ पर पढ़ाई बहुत ही
अच्छी थी क्षेत्र के लोगों को यहां अपने बच्चों को पढ़ाना सपना लगता था। जब कि यहां उस वक्त 12 km पैदल रास्ता तय कर के जाना होता था पर आज कारगिल शाहिद अनसूया प्रसाद जखमोला मोटर मार्ग होने के बावजूद भी यहाँ बदहाली अनदेखी का रोना है। उसी की बगल में ग्राम सभा खिकरयूं में भी हाल बहुत बुरे है। ग्राम सभा चौकड़ी चुराणी कलवाडी क्षेत्र के बड़े गॉंव में आते है यहां के लोग अमीर ज्यादा है पहले से ही इस कि वजह ये है कि यहां खेती पहले से कम रही है या फिर दूर नयार के किनारे इन लोगों की खेती है,जिस वजह से इस क्षेत्र के लोग पहले से ही दिल्ली चंडीगढ जैसे जगह पलायन हो गए है। पर जो गॉंव में है भी अन्य गाँव के मुकाबले पैसे वाले है।
ऐसी क्षेत्र में एक स्कूल है जो 18 गाँव को जोड़ता है सिद्धखाल जो क्षेत्र का अकेला ऐसा स्कूल है जिस स्कूल में आप गाड़ी सीधा ले जांयेगे वरना सब जगह ये हालत नही है सड़क की यह स्कूल कोटद्वार से बीरोंखाल जाने वाले रास्ते में पड़ता है। शिक्षा भी अच्छी है यहाँ अन्य स्कूलों के मुकाबले पर भवन अच्छे नही है लैब नही है ।एक मात्र फील्ड है जिस में बॉलीबॉल ही खेला जा सकता है बस बाकी कोई सुविधा नही है।
अब बात करता हूँ क्षेत्र के सब से पुराने स्कूल और एक मात्र महाविद्यालय रिखणीखाल की जिस में भवन की कमी अध्यापकों की कमी पूरे बिषय न होना लैब की कमी फील्ड की कमी और बिजली की किल्लत आदि बहुत सी कमियाँ है यहां पहके स्कूल में पढ़ाई अच्छी थी पर जब से महाविधालय खुला प्रायमरी स्कूल और माध्यमिक विद्यालय की हालत खराब हो गई है 500 मीटर पर है ये तीनों विद्यालय।
राजकीय उच्चतम माध्यमिक बिद्यालय खदरासी यह बिद्यालय करतिया की तरह मंदाल नदी के किनारे है सड़क की कोई सुविधा नही है झूला पुल ही इस को देश से जोड़ता है। यह बिद्यालय सन 1999 तक जनता बिद्यालय था उचिकरण के साथ साथ इस बिद्यालय का निम्नी करण भी हुआ है।करीब 5 साल तक तो यहां साइंस का क्लास ही नही था अब है और लैब नही है प्रशिक्षण के लिए । इस रिखणीखाल क्षेत्र में आज भी ७५% छात्र नकल कर के पास होते है दावे के साथ बोल रहा हूँ।


सन 2003 में केंद्र की मनमोहन सरकार ने एक योजना चलाई थी जिस का नाम है आंगनबाड़ी जिस के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में बालविकास , महिला उन्मूलन, जच्चा-बच्चा देख-रेख, कुपोषण, प्रथम शिक्षा और अन्य कही बिभागों से मिला कर योजना चलाई जो शुरुआत में ही धरातल पर दम तोड़ गई। जिस के लिए न नियम कड़े बने न कानून न भवन न यह भी हमारे क्षेत्र में है पर पूरे देश की तरह इस विभाग द्वारा दिये गए सत्तू बिस्कुट,नमक,दलिया आंगनवाड़ी बहिनजी के गाय,भैस खा रही है।
कुछ हाल कुलाणी खाल के भी ऐसे ही है पृथक राज्य के बाद इस बिद्यालय का भी जीर्णोद्धार और उचिकरण हुआ और शिक्षा का अभी तक कोई आता पता नही है। सिर्फ भवन का उच्चीकरण हुआ है शिक्षा का तो मजा ही बना है। खुबाणी, लयकुली,बडेर गाँव, छाड़ियाणी, धुरा,बराई, खनेता,सोली,टांड़यों,सिलगोंव,गाडियों, उनेरी,ढाबखाल, सींदी, सिमल गॉंव, पानीसेण, सुन्दरोली, बूंग, सिनाला, इन गॉंवों के स्कूल चौपट है किसी भी प्रकार की शिक्षा के लिए रात नही खुली है।

स्वास्थ्य  सेवा-:एक मात्र चिकित्सा केंद्र रिखणीखाल में है जो मुख्य बाजार से 3km दूर है देबुखाल बैंड पर जिस में 108 सेवा बहुत अच्छी है पर यहाँ भी भवन बने हुए 25 साल हो गए आज तक कोई सुविधा नही है फस्टेडबॉक्स के लिए भी सामान मरीज से मँगवाया जाता है वो किसी केमिस्ट्री की दुकान में जायेगा ढूंडने फिर वार्डबॉय या कामचलाऊ नर्स उस की मरहमपट्टी करेंगे हर साल यहां डॉ बदलते है डॉ कम कोमपोटेर ज्यादा बदलते है ये लोग स्थानीय है तो ठीक है वरना सभी कोटद्वार से आते जाते है रोज,3 घण्टा आना3 जाना तब कैसे स्वास्थ्य सेवा होगी उन को ही कुछ दिन में हड्डी दर्द की गैस की दिक्कत हो जाएगी।

तिमलसेंण डिस्पेंसरी में 2 स्टाफ है पर दवाई नही है। रथुवाधाब डिस्पेंसरी में भी दवाई नही 1 स्टाफ खदरासी में भी फोड़े की दवाई मिलेगी बस 1स्टाफ किमाड में भी वही हाल गुनेड़ी,बएला,बूंगा में भी हालत खराब है स्वास्थ्य।सेवा है लिए सब से नजदीक 85km कोटद्वार है और वहाँ भी नए भवन की चकाचोंद में दवाइयों रास्ता भूल गए जितने भी डॉ है वो निजी क्लीनिक खोले है और 200₹ का फीस लेते है फिर उस से नजदीक है जौलीग्रांट, दून या इंद्रेश Aiims ऋषिकेश जहां डॉ की सीट पर कुत्ते बैठे होते है हॉस्पिटल के अंदर गाय घुस जाती है।
75% गॉँव में सड़क न होने की वजह से 108 एम्बुलेंस नही जा पाती है इस वजह से मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते है। जो मरीज रिखणीखाल हॉस्पिटल पहुंच भी जाते है वहां सुविधा न होने की वजह से मरीज की हालत खराब हो जाती है।


सुरक्षा -: क्षेत्र में सुरक्षा के इतंजाम ये है कि कोई थाना ही नही है पहले रोज 3 पुलिश वाले लैंसडौन से आते थे और साम को चले जाते थे पर अब 4 पुलिश वाले 4 होमगार्ड की तैनाती तो है पर उन को कोई सुविधा नही मिलती वो अनाथों की तरह जीवन गुजारते है इस में वो क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा क्या करेंगे।
गुलदारों का रिख का आतंक है इस क्षेत्र में जिमकॉर्बेट पार्क ढिकाला से लगे होने के कारण यहां बन्यजीवों को आप मार नही सकते हो और बन्यजीव आप को मार दे कोई खोज खबर नही। कोई फोरेस्टगार्ड नही है क्षेत्र में अगर है भी तो वो मेदावन, मुंडिया पाणी, कांडा रथुवाढाब से ऊपर नही आते। खुद वो लोग जंगलों से तस्करी करते है चरस गांजा लकड़ी,मच्छी बन्यजीवों की।
बिगत 6 साक पहले ग्राम धामदार में बाघ न 5 लोग खा दिए लोगों ने बाघ मार दिया।पर इस जुर्म में 10 लोग आज भी जेल में है। ऐसी बहुत कहानियां है ऊसा क्षेत्र की।
राजस्व का फायदा-: यह क्षेत्र राजस्व अर्जन के लिए बहुत अच्छा है *(राजस्व मतलब सरकार के आय का साधन ये सरक भाषा है)* पर यहां तो सब कुछ होते हुए भी कुछ नही है 2011 और 2013 में आये आपदा में बंजादेवी झूला पुल बह गया था आज भी वो पुल वैसा ही है नोदानु,करतिया,झरत,ढूंगीचोड,गोलीचोड, अम्डडा को जोड़ने वाला एक मात्र मंदाल नदी पर ये पुल है और करतिया स्कूल जाने वाले बच्चों को रोज कठिनाई का सामना करना पड़ता है। आम जनजीवन की गाड़ी भी नदी नालों में फंसी है।
यही हाल गाजा,मुछेल गाँव गल्ले गॉँव दबराड, सेरा गाड़ को जोड़ने वाला पुल ढोंटियाल मंदिर के पास 4 साल पहले बाह गया। आपदा में मेलधार गॉँव पूरीतरह से दब गया था मलवे में उन के पुनर्वास की बात भी अधर में लटकी है,सरकार बदली पर सूरतें हाल नही।
तिमल सैण कपुल डोबरियाल का पुल, सिवाणा डगु का पुल, ऐसे नजाने बहुत से पुल है जो आपदा की भेंट चढ़ गए और आज तक किसी ने उन की सुधि न ली। सब लोग चाटुकारिता में ब्यस्त है और क्षेत्र बदहाली का रोना रो  रही है।
कुछ गॉँव जैसे चेबड़,तेडिया,पांड,धुरा,धूताडाँड़ ,कुडू डाँड़ छमना,टांड़यों,सिल गाँव,राजबो मल्ला, कुमे खत्ता, जोशी डाँड़, ये गॉँव बहुत ही दुर्गम जगह है यहाँ सुखः सुविधा 0% है पर लोग अभी भी उम्मीद में है कि कभी तो विकाश का सूरज उगेगा।
इस क्षेत्र में जो भी सरकारी भवन टूटा या जर-जर हुआ उस का कोई मालिक नही है। ऐसा नही है कि यहां कोई नेता आता नही है डॉ हरक सिंह रावत (जब राजस्व मंत्री थे तब 3 बार आये और अभी चुनाव के बख्त 2 बार) हरीश रावत (पूर्व मुख्यमंत्री) लगभग 3 बार आये सुरेंद्र सिंह नेगी लगभग हर 2,3 साल में आते है पर आंसुओं की बारिश कर के सब निकल जाते है। कहते है 1983 में इंद्रागांधी ने इस छेत्र के लिए अलग पैकेज की घोषणा की थी और वो 1984 तक काम सुरु नही हुआ और आज भी 1984 वापस नही आया। स्वेज विभाग,स्वजल ग्राम,भूमि संरक्षण इकाई,समूह गाह,
खाद बीज विभाग,पशुपालन पालन, पशुचिकित्सा,sbi बैंक ,pnb बैंक, अलकनन्दा ग्रामीण बैंक कॉर्पोरेशन बैंक इस इलाके में है पर बैंकों में सर्वर डोन ही रहता है,या बिजली नही होती है। राजस्व कैसे प्राप्त होगा। एक सराब का ठेका है पर इस बार ठेका बंद कराओ आंधी में वो भी बंद हो गया उस ठेके में हर दारू की बोतल 500₹ की होती थी रात दिन मदिरा मिलता था। पर क्षेत्र की दारु की पूर्ती आर्मी से सेवानिबरित लोग या सेवारत लोग कर रहे है गैर तरीके से भी दारू मिलता है। कोटरी सैण गाड़ियों पुल रिखणीखाल, देबुखाल, चकोलिया खाल ढाबखाल और गॉँव में कच्ची शराब।
इस क्षेत्र में दूध उत्पादन, मछली उत्त्पादन, बकरी, भेड़ ,या मवेशियों का ब्यापार आसानी से हो सकता है पर अब पलायन की भयानक स्थिति की वजह से मजबूर लोग है गाँव में रह गए है जो खुद को मजबूरी में मजबूर बताते है। जिन के पास पैसा है वो घर छोड़ चुके है। खेलने के मैदान बन सकते है इस क्षेत्र में पर वो भी नही हो रहा है आय की हजारों स्रोत है पर सभी स्रोतों को सरकार की अनदेखी ने बंद कर दिया है।

खेल-: बॉलीबॉल इस क्षेत्र का मुख्य खेल रहा है वजह साफ है कि कोई और खेल खलने के लिए लोगों के पास जगह नही थी। बॉलीबॉल खेलने के लिए ज्यादा बड़ा फील्ड नही चाहिए और कुछ फील्ड है छेत्र में जैसे करतिया,कुमालडी (वैसे अब ये फील्ड आधा नदी में बह गया) आठबाखल में है पर बाकी जगज ऊपरी इलाकों में खेतों में खेल खेल जाते है कोई भी खेल।
एक जमाना था ज इस क्षेत्र में जाने माने बोलिबोल खिलाड़ी थे। जैसे-:बिक्रम सिंह नेगी (बड़खेत) भोपाल सिंह गुसाईं (राजबो) भारत सिंह रावत (आठबाखल) देवपाल सिंह रावत (द्वारी गाँवणा) चुर्रा भाई (धामदार) महावीर सिंह नेगी (कुमालडी) नेगी जी (सिरस्वाडी) पुष्कर सिंह (चुरानी) गुलडांग सिंह (कलवाड़ी) परवीन सिंह नेगी (सुन्दरोली) सूरज सिंह,बोली भाई,सतेंद्र सिंह विनोद सिंह(ब्राई धूरा) त्रिलोक सिंह (कांडा नाला) विक्रम सिंह रावत (कोटरी) केदार सिंह रावत (कोटरी) यशवंत सिंह (पलिगांव) दीवान सिंह (द्वारी) भारतेंदु सिंह पटवाल (कोटरी) अनिल नेगी (चपडेत) चंद्र मोहन सिंह (तिमल सैण) यशवंत सिंह (ढुङ्गधार) गम्भीर सिंह (राजबो) श्याम सिंह (राजबो) जय दीप सिंह बिष्ट (चौकड़ी) भारतीय मुक्के बाजी के कोच है उभि जयदीप सिंह बिष्ट जी। लगभग सभी लोग आर्मी में है भारतीय सेना में इन लोगों ने क्षेत्र का नाम रोशन किया है। पर कोई खेल अकैडमी नही बन पाई क्षेत्र में।


 जारी है..... अगला भाग पढ़ने के लिए ब्लॉग के साथ बने रहे

लेखक-:देवेश आदमी (प्रवासी)
पट्टी पैनो रिखणीखाल
जिल्ला पौड़ी गढ़वाल
(देवभूमि उत्तराखंड)

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