कलम इतनी कमजोर निकली उनकी,
नेता के गुणगान में लिखने लगी है।
कल तक जो कलम जनतंत्र के लिए बोलती थी,
चुनाव के मौसम में नेता के आँगन में दिखने लगी।
इस कलम में तो स्याई उनकी निकली,
जिनको पांच साल तक कोस रहे थे।
कागज जनतंत्र का था,
भाषा अलंकारों में बोल रहे थे।
बस इस कलम के लिखे शब्द
दो मास में झुमले कहें जायेंगे
कविता गिरबी रख दी जब,
अच्छे छंद कहाँ रंचे जायेंगे।
फिर क्यों इतनी महंगी कलम से,
हल्का रंग भरने की क्या जरुरत थी।
कवि तो आईना था समाज का,
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