Wednesday 11 January 2017

मै जीना चाहता हूँ उन पलो को,


मै जीना चाहता हूँ उन पलो को,
जो मैंने अपने गाँव अपनी पट्टी में बिताये थे।
मै लिखना चाहता हूँ उस पाटी पर,
क, ख, ग, जो मेरे दगड्यो ने मिटाये थे ।।

मै टाँगना चाहता हूँ फिर उस खूँटी पर कपड़े,
जहाँ मै अपनी फटी ड्रेस टंगा करता था।
मै फिर धूल फाँकना चाहता हूँ उन रास्तों की,
जहाँ मै भागा करता था।
याद है मुझे वह जंगल में पेड़ की टूक पर चड़कर,
हिमालय को टक-ना।
दूसरे के बैलो के गले से घंटियाँ चुराकर छुपाकर रखना ।
गाय और बैल की पुंछ पकड़ कर,
हम घर की तरफ दौड़ा करते थे ।
पन्देरे में रखे दूसरे के कनस्तर को,
पत्थर से फोड़ा करते थे ।

शनि और इतवार की रात को फिल्म देखते हुए भट्ट खाना ।
झट बिजली गयी, कि दूसरो पर लात घुसे चलाना ।
रुडियों में माँ हमें सुलाती थी,
पर हम माँ को ही सुलाया करते थे ।
घर से निकलकर नंघे बदन तालाब,बांध में, छलांग लगया करते थे ।
गोर्या छोरो के साथ कभी-कभी ताश खेलना सीखा करते थे ।
स्कूल से चौक चुराकर रास्ते में प्रेमियो का नाम लिखा करते थे।
मै जीना चाहता हूँ उन पलो को,
जो मैंने अपने गाँव अपनी पट्टी में बिताये थे।।

हाँ! मै उन गलत किस्सों को नहीं दोहराना चाहता,
जो मैंने बचपन में किये थे।
पापा की बीड़ी के टुडे उठाकर छुप-छुपकर,
कोने में जाकर पीये थे ।
अपने खुद के नियम कानून होते थे, खुद होते थे खेल ।
कभी दोस्तों से लड़ाई-झगड़ा होता,कभी होता था मेल।
मै जीना चाहता हूँ उन पलो को,
जो मैंने अपने गाँव अपनी पट्टी में बिताये थे ।

मै चाहता हूँ बचपन ये के सुंदर दिन,
अपने बच्चो को भी जीने दूँ ।
बस्ते का बोझ उतरकार उनके कन्धे से,
उन्हें खुली हवा में साँस लेने दूँ ।
मै जीना चाहता हूँ उन पलो को,
जो मैंने अपने गाँव अपनी पट्टी में बिताये थे ।
मै लिखना चाहता हूँ उस पाटी पर,
क, ख, ग, जो मेरे दगड्यो ने मिटाये थे ।

प्रदीप रावत "खुदेड़"
 

1 comment:

  1. बहुत यादें ताज़ी हो गयी हैं . ऐसा लग रहा है जैसे अपनी दांडी काठियो में में पहुँच गयी हूँ
    आभार आपका

    ReplyDelete

गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...