Wednesday, 9 May 2018

23.5 किलो की मूली पैदा करने वाले श्री विद्या दत्त का ये और कारनामा - सुधीर सुंदरियाल


बाधाएं कब बांध सकी हैं आगे बढ़ने वालों को..!
आपने कुछ समय पहले कई अख़बार और सोशल मीडिया पर एक खबर देखी होगी कि श्री विद्या दत्त नाम के एक बुजुर्ग ने एक 23.5 किलो की मूली पैदा की है। वो बुजुर्ग इस बार उससे भी बड़ी मूली पैदा कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाएंगे। कल हमैं इनकी कर्मभूमि मोती बाग ग्राम सांगुड़ा,  देखने का मौका मिला। ....जहां इन्होंने अपना कर्मक्षेत्र  चुना उस क्षेत्र मे कभी पानी की बहुत बड़ी समस्या थी। वहां पीने का पानी तक नहीं था। तब ऐसी परिस्थिति में श्री विद्या दत्त जी ने लगभग एक लाख लीटर का पानी का टैंक जमीन के अंदर बनाकर उसके ऊपर के पहाड़ के बरसाती पानी को इकठ्ठा कर उसमे डाल कर, रैन वाटर हार्वेस्टिंग का एक अनोखा उदाहरण दुनिया को दिखा दिया।

अमेज़ॉन से खरदिए मंडवे का आटा नीचे के लिंक से 
इस टैंक का नाम सुखदेई जलाशय है, जिसका निर्माण  1978 मे किया गया। जहां पीने का पानी नहीं मिलता था वहां श्री विद्या दत्त जी ने इस जलाशय से अपने खेतों में पानी की व्यवस्था कर सागसब्जी और फलों का रिकार्डतोड़ उत्पादन करने लगे । आज भी 82 वर्ष से ऊपर की उम्र मे वो साग सब्जी, फल और मौन पालन मे नित नये प्रयोग करते रहते हैं। कृषि पंडित श्री विद्या दत्त जी इन प्रयोगों के अलावा लगातार भू सुधार और #चकबन्दी के लिए भी काम कर रहे हैं। ऐसे जीवट महापुरुष को मेरा शत शत नमन है।

Sudhir Sundriyal
 भलु लगद /Feel Good
बंजर खेत आबाद करो एक मुहीम

Monday, 7 May 2018

बिच्छू घास से बनी चाय


खबर नॉन स्टॉप से - 
पहाड़ की एक घास जो बदन पर लग जाए तो खुजली के मारे जान निकल जाती है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि यह घास चाय की मीठी चुस्की भी दे सकती है। ठंड में आपके बदन को गर्म रखने के लिए भी तैयार है। हालांकि बहुत ज्यादा प्रचलन न हो पाने की वजह से आज तक यह उत्पाद अपने ही घर में दम तोड़ रहे है, लेकिन अब जिला सहकारी बैंक सहकारी कौतिक-2016 के जरिये एक बाजार देने जा रहा है। जो 19 जून से गुरूड़ाबाज में शुरू होने जा रहा है। जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री हरीश रावत और विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल करेंगे। अब वह दिन दूर नहीं जब पहाड़ की बिच्छू घास सीमा पार भी अपनी धूम मचाएगी और पहाड़ के कास्तकार होंगे मालामाल। बिच्छू घास से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी (जैविक उत्पादन का राष्ट्रीय उत्पादन) ने प्रमाणित किया है। 
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इस ग्रीन टी को बिच्छू घास के अलावा पिरुल, बुरांश, तुलसी और चीड़ की पत्तियां से तैयार किया गया है। जो बागेश्वर स्थित हिमालयन ऑग्रेनिक औदोगिक उत्पादन सहकारी समिति में निर्मित है। खास बात यह है कि इस चाय के औषधीय लाभ भी है। बताते है कि बिच्छू घास में जोड़ों के रोग से लड़ने की असीमित क्षमता होती है। बिच्छू घास से कृषकों ने शॉल भी तैयार कर ली है। इसे भी मेले में शामिल किया जा रहा है। बताते है कि बिच्छू घास यानि नेटल ग्रास के रेशे से धागे तैयार किए है। जिससे यह शॉल तैयार की गई है। इसके अलावा मेले में मिट्टी की मूर्तियां मिलेंगी। जो खास उधमसिंहनगर जिले के कुम्हारों दारा तैयार की गई है। पत्थर की चककी, कपड़े और रुई से तैयार की गई है और एनपीओपी ने इन उत्पादों को राज्य के बाहर विदेशों तक बेचने का जिम्मा उठाया है। इस मेले के पहाड़ के कास्तकारों को बाजार दिलाया जाएगा। लोग मसाला डोसा के बारे में तो जानते है, लेकिन हमारा प्रयास है कि लोग भट्ट की चुड़कानी और झिगोरे की खीर के बारे में भी जाने। मसाला डोसा की तरह पहाड़ी व्यंजन, हस्त शिल्प को भी पहचान मिले। मेले में पहाड़ी व्यंजन के साथ पहाड़ी खेल-कूद को भी पहचान दिलाने की तैयारी है। मुख्य कार्यक्रम समन्वयक डॉ.अरविंद जोशी ने बताया कि मेले में गुल्ली डंडा, खो-खो, कबड्डी, मुर्गा झपट, बाघ बकरी सहित कई अन्य खेलों का आयोजन कराया जाएगा। जो मेले में आने वाला हर व्यक्ति खेल सकता है। मेले में कुल 40 स्टॉल लगाए जाएंगे। एक स्टाल पहाड़ के युवाओं के लिए होगा। जिसके जरिये उनकी कैरिएर काउंसलिंग की जाएगी।
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गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...