Wednesday 23 August 2017

लिम्बा (खटाई Lemon/Citrus) डाॅ राजेन्द्र डोभाल महानिदेशक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद उत्तराखण्ड।

त्तराखण्ड राज्य का अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय होने के कारण अपने अनमोल तथा अस्मरणीय स्वाद के लिए वर्षों से ही प्रसिद्ध है। प्रदेश अनेकों प्राकृतिक सम्पदाओं का भण्डार है, जिसमें से खटाई एक प्रमुख फल है। शायद ही कोई ऐसा प्रदेशवासी हो जिसने खटाई का आनन्द ना लिया हो। उत्तराखण्ड प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में खटाई को एक विशेष स्वाद के लिये जाना जाता है। पूरे विश्वभर में चीन, भारत, मैक्सिको, अर्जेन्टाइना, ब्राजील, यू0एस0, तुर्की, इटली, स्पेन, ईरान आदि इसके सर्वाधिक उत्पादक देश है। वर्ष 2012 के आंकडों के अनुसार चीन द्वारा सर्वाधिक 2,300,00 टन तथा भारत द्वारा 2,200,000 टन उत्पादन किया गया। उत्तराखण्ड राज्य में खटाई का सर्वाधिक उत्पादन अल्मोडा जिले में लगभग 8,332 मैट्रिक टन प्रतिवर्ष तक किया जाता है, जिसमें धौलादेवी, हवालबाग, ताकुला, ताडीखेत, द्वाराहाट, चैखुटिया, लमगडा तथा भैसियाछाना आदि प्रमुख है। इसके अलावा उत्तरकाशी, टिहरी, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ आदि जिलों में भी खटाई का व्यवसायिक उत्पादन किया जाता है।
एशिया मूल के खटाई फल का संबंध Rutaceac कुल से है तथा इसे Citrus limon वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है। इस प्रजाति के सभी फलों को सामान्यतः सिट्रस नाम से जाना जाता है जो कि इन फलों में सर्वाधिक पाये जाने वाले Citric acid को भी दर्शाता है। खटाई विटामिन-सी का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है जो कि शरीर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विटामिन-सी की खोज 1912 में की गई थी तथा वर्ष 1928 में सर्वप्रथम प्राकृतिक स्रोत से निकाला गया जिसे बाद में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा शरीर के लिए महत्वपूर्ण तथा आवश्यक दवा की सूची में भी शामिल किया गया। खटाई मे विटामिन-सी की मात्रा 53 मि0ग्रा0/100 ग्रा0 तक पायी जाती है। इसके अलावा खटाई में ऊर्जा-121 किलो जूल, प्रोटीन-1.1 ग्रा0, फाइबर-2.8 ग्रा0, कोलीन-5.1 मि0ग्रा0, मैग्नीशियम- 8.0 मि0ग्रा0, मैग्नीज़- 0.03 मि0ग्रा0, पोटेशियम- 138 मि0ग्रा0, फाॅस्फोरस- 16 मि0ग्रा0, आयरन- 0.6 मि0ग्रा0, कैल्शियम- 26 मि0ग्रा0 तथा जिंक- 0.06 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्रा0 तक पाये जाते है।

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खटाई में इसके रसीले भाग के अलावा दो महत्वपूर्ण छिलके वाले भाग होते है जो कि एक फ्लेवीडो तथा दूसरा एल्बेडो होता है। फ्लेवीडो खटाई का सबसे बाहरी भाग होता है जो कि इसेंसियल आॅयल का भी प्रमुख स्रोत होता है और प्राचीनकाल से ही फ्लेवर और सुगंध के लिए प्रयोग किया जाता है, जबकि अन्य दूसरा भाग एलबेडो सबसे बाहरी भाग के अन्दर वाला भाग होता है जो कि फाइबर का एक अच्छा स्रोत होता है, और विभिन्न खाद्य पदार्थो में भी प्रयोग किया जाता है।

खटाई में पाॅलीफीनोलस, टर्पीन्स तथा टेनिन्स आदि प्रमुख रासायनिक अवयव पाये जाते है। औषधीय रसायनों की प्रचूरता के कारण खटाई को परम्परागत रूप से ही विभिन्न स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रयोग किया जाता है। इसका सेवन पेट, इटेस्टांइन तथा किडनी आदि के रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी दूरस्त पर्वतीय क्षेत्रों में खटाई का सेवन बुखार को कम करने हेतु किया जाता है। विभिन्न शोध-पत्रों के अनुसार इसके निरन्तर सेवन का विभिन्न कैंसर रोगों में भी प्रभावी पाया गया है।
यह स्वरोजगार का एक अच्छा विकल्प भी है क्योंकि इससे निर्मित विभिन्न खाद्य पदार्थ जैसे कि जूस, अचार, चटनी तथा अन्य विभिन्न एनर्जी ड्रिंक्स की बाजार में अच्छी मांग रहती है। स्थानीय बाजारों में भी इसकी कीमत लगभग 20-30 रू0 प्रति किलो तक मिल जाती है।

डाॅ राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
उत्तराखण्ड।

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