Wednesday 5 July 2017

अरुण सजवान की छोटी सी शुरुआत से पहाड़ों के खेतों को आबाद करने की कोशिश


अब चकबंदी टीम के युवा अब अपने-अपने खेतों  पर काम करने लगे है। चकबंदी टीम से वैसे तो बहुत सारे लोग जुड़ते है । पर टीम में छनकर वही आता है जिसमे वाकई अपनी मात्रभूमि के लिए दर्द होता है। पिछली बार मैंने आपका परिचय अनूप पटवाल से कराया था। जो अपने बंजर खेतो में किवी और अखरोट की पौध लगाकर स्वरोजगार की तरफ कदम बढ़कर शुरुआत कर चूका है। आज आपका परिचय चकबंदी कार्यकर्ता अरुण सजवाण से कराने जा रहा हूँ । जिसने अपने खेतों में नीबू के पेड़ लगाकर अच्छी शुरूआत कर दी है। । अरुण सजवान उत्तराखंड सरकार के एक डिपार्टमेंट सरकारी नौकरी करते है। अरूण सजवान ने अन्य सरकारी कर्मचरियों की तरह अपने खेतो को बंजर छोडकर देहरादून या अन्य जगह बसने की नहीं सोची। अरुण से सरकारी नौकरी करने वालो के लिए एक प्रेरणा स्रोत है जो नौकरी लगने के बाद  खेती को त्याग देते है। इस लिंक पर देखिये गढ़वाली सुपर हिट फिल्म भाग-जोग


पढिये अरुण की कलम से ही उनकी आंशिक उपलब्धि। 
एक लंबे समय के बाद एक छोटी सी शुरुआत की है,एक सपना था कि जो खेत बंजर हो रहे है उनको रोकने की कोशिश की जाये। मुझे प्रकृति से बेहद लगाव है,पेड़ पौधे लगाना मेरा शोक है। फलदार वृक्ष ज्यादा अच्छे होते है लेकिन जानवर इसे बहुत नुकसान पहुंचाते है। इसके लिए सबसे बेस्ट तरीका था कि निम्बू की पौध लगाये जाये क्योंकि इसको न पशु खा पाते है न बन्दर न सुंवर।पिछले एक साल से हर रविवार को इसकी तैयारी होती थी,और आख़िरकार कल वो दिन आया जब इसमें 50 निम्बू के पौधे रोपे गये। निम्बू उत्तराखण्ड के सर्वोतम नर्सरी में से एक निर्मल नर्सरी से लिए गए जो देहरादून से 40 किलोमीटर लगभग हिमाचल बार्डर की और है।   इस लिंक पर देखिये नरेंद्र सिंह नेगी जी नया गीत जो जल्द आपके बीच आने वाला है
अभी हाल में ही निर्मल जी ने एक बड़ी उपलब्धि अखरोट की कलम पर फल लगाकर प्राप्त की है। एक किसान एक बच्चे की तरह पेडो को ट्रीट करता है। उन्हें धुप से बचाता है,उन्हें पानी समय पर देता है। उनके लिए खाद के इंतजाम करता है,उनमें अलग अलग तरह के कीटनाशक इस्तेमाल करता है जब कभी पेड़ खराब होने लगते है वो एक डॉक्टर की तरह उसका इलाज करता है,और तब जाकर सैकड़ो फलदार वृक्षो की नर्सरी और उन्नत किस्म के पेडों की नर्सरी तैयार होती है।हम अलग अलग लोग करीब 600 पेड़ 
के आसपास यहां से लाये। (आपको भी जरूरत पड़े तो बेस्ट क्वालिटी के पेड़ आपको यहां मिल जायेंगे एक आकर्षक दाम पर) अब बारी थी इन्हें रोपने की, समय कि कमि के कारण ज्यादा सफाई तो नही हो पाई फिर अपनी तरफ से अच्छा ही किया।और अपनी ये मेहनत मैं समर्पित करता हु उन आलोचकों को जो कहते थे की दिल्ली में रहकर बंजर खेतो की बाते नही करते, और आज ख़ुशी है कि वो बोलते ही रहे और मैंने अपने दिल की तसल्ली कर ली ;-) उनके लिए मैं इतना ही कहना चाहता हूं कमी मेरे पास समय की है जोश और लगन की नही

2 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रयास भेजी

    ReplyDelete

गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली

 गढ़वाल के राजवंश की भाषा थी गढ़वाली        गढ़वाली भाषा का प्रारम्भ कब से हुआ इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं। गढ़वाली का बोलचाल या मौखिक रूप तब स...