Saturday 25 February 2017

तिमला Elephant Fig




वैसे तो उत्तराखण्ड में बहुत सारे बहुमूल्य जंगली फल बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं जिनको स्थानीय लोग, पर्यटक तथा चारावाह बडे चाव से खाते हैं, जो पोष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इनमें से एक फल तिमला है जिसको हिन्दी में अंजीर तथा अंग्रेजी में Elephant Fig के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम फाईकस आरीकुलेटा है तथा मोरेसी कुल का पौधा है। उत्तराखण्ड में तिमला समुद्रतल से 800-2000 मीटर ऊंचाई तक पाया जाता है। वास्तविक रूप में तिमले का फल, फल नहीं बल्कि एक इन्वरटेड फूल है जिसमें ब्लॉज्म दिख नहीं पाता है। इस लिंक पर देखिये गढ़वाली फिल्म भाग-जोग पार्ट 1
उत्तराखण्ड में तिमले का न तो उत्पादन किया जाता है और न ही खेती की जाती है। यह एग्रो फोरेस्ट्री के अन्तर्गत अथवा स्वतः ही खेतो की मेड पर उग जाता है जिसको बड़े चाव से खाया जाता है। इसकी पत्तियां बड़े आकर की होने के कारण पशुचारे के लिये बहुतायत मात्रा में प्रयुक्त किया जाता है।
तिमला न केवल पोष्टिक एवं औषधीय महत्व रखता है अपितु पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकीय में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। कई सारी पक्षियां तिमले के फल का आहार लेती हैं तथा इसी के तहत बीज को एक जगह से दूसरी जगह फैलाने में सहायक होती हैं एवं कई सारे Wasp प्रजातियां तिमले के परागण में सहायक होती हैं।


सम्पूर्ण विश्व में फाईकस जीनस के अन्तर्गत लगभग 800 प्रजातियां पायी जाती हैं। यह भारत, चीन, नेपाल, म्यांमार, भूटान, दक्षिणी अमेरिका, वियतनाम, इजिप्ट, ब्राजील, अल्जीरिया, टर्की तथा ईरान में पाया जाता है। जीवाश्म विज्ञान के एक अध्ययन के अनुसार यह माना जाता है कि फाईकस करीका अनाजों की खोज से लगभग 11000 वर्ष पूर्व माना जाता है। इस लिंक पर देखिये गढ़वाली फिल्म भाग-जोग पार्ट 2
पारम्परिक रूप से तिमले में कई शारीरिक विकारों को निवारण करने के लिये प्रयोग किया जाता है जैसे अतिसार, घाव भरने, हैजा तथा पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों के रोकथाम हेतु। कई अध्ययनों के अनुसार तिमला का फल खाने से कई सारी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ आवश्यक पोषकतत्व की भी पूर्ति भी हो जाती है। International Journal of Pharmaceutical Science Review Research के अनुसार तिमला व्यवसायिक रूप से उत्पादित सेब तथा आम से भी बेहतर गुणवत्तायुक्त होता है। वजन बढ़ाने के साथ-साथ इसमें पोटेशियम की बेहतर मात्रा होने के कारण सोडियम के दुष्प्रभाव को कम कर रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है। नरेंद्र सिंह नेगी जी का 2017 का पहला गीत
Wealth of India के एक अध्ययन के अनुसार तिमला में प्रोटीन 5.3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेड 27.09 प्रतिशत, फाईवर 16.96 प्रतिशत, कैल्शियम 1.35, मैग्नीशियम 0.90, पोटेशियम 2.11 तथा फास्फोरस 0.28 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं। इसके साथ-साथ पके हुये तिमले का फल ग्लूकोज, फ्रूकट्रोज तथा सुक्रोज का भी बेहतर स्रोत माना जाता है जिसमें वसा तथा कोलस्ट्रोल नहीं होता है। अन्य फलों की तुलना में फाइवर भी काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा ग्लूकोज तो फल के वजन के अनुपात में 50 प्रतिशत तक पाया जाता है जिसकी वजह से कैलोरी भी बेहतर मात्रा में पायी जाती है। तिमला में सभी पोषक तत्वों के साथ-साथ फिनोलिक तत्व भी मौजूद होने के कारण इसमें जीवाणुनाशक गुण भी पाया जाता है तथा एण्टीऑक्सिडेंट प्रचुर मात्रा में होने की वजह से यह शरीर में टॉक्सिक फ्री रेडिकल्स को निष्क्रिय कर देता है तथा फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग में कई सारे उत्पादों को बनाने में मुख्य अवयव के रूप में प्रयोग किया जाता है। पोखरा विश्वविद्यालय, नेपाल 2009 के अनुसार तिमला में एण्टीऑक्सिडेंट की मात्रा 84.088 प्रतिशत (0.1 मि0ग्रा0 प्रति मि0ली0) तक पाया जाता है।
इस लिंक पर देखिये उत्तराखंड की संस्कृति की एक अहम् झलक मौरी मेले के माध्यम से

तिमला एक मौसमी फल होने के कारण कई सारे उद्योगों में इसको सुखा कर लम्बे समय तक प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में तिमले का उपयोग सब्जी, जैम, जैली तथा फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग में बहुतायत मात्रा में उपयोग किया जाता है। चीन में तिमले की ही एक प्रजाति फाईकस करीका औद्योगिक रूप से उगायी जाती है तथा इसका फल बाजार में पिह के नाम से बेचा जाता है। पारम्परिक रूप से चीन में हजारो वर्षो से तिमले का औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। FAOSTAT, 2013 के अनुसार विश्व भर में 1.1 मिलियन टन तिमले का उत्पादन पाया गया जिसमें सर्वाधिक टर्की 0.3, इजिप्ट 0.15, अल्जीरिया 0.12, मोरेक्को 0.1 तथा ईरान 0.08 मिलियन टन उत्पादन पाया गया।

यदि उत्तराखण्ड में इन पोष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर under utilized जंगली फलों हेतु value addition एवं मार्केट नेटवर्क उचित प्रकार से स्थापित कर फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग के लिये बाजार उपलब्ध कराया जाय तो ये under utilized जंगली फल प्रदेश की आर्थिकी एवं स्वरोजगार हेतु बेहतर विकल्प बन सकते हैं।

साभार

डा0 राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्
उत्तराखण्ड।

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